रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद

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... राजा साहब ने पत्र बंद करके रख दिया और विचारमग्न हो गए! उनके मुँह से बेअख्तियार निकल गया-वही हुआ जिसका मुझे डर था। आज क्लब जाते-ही-जाते मुझ पर चारों ओर ...

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